POEMS ON LAKSHYA

लक्ष्यप्राप्ति का संकल्प कराती कविताएँ :

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(1) वह कैसा लक्ष्य -

वह कैसा लक्ष्य
जिसे पा कर फिर प्यास रह गयी शेष
बताने की , क्या पाया ?

वह कैसा पथ-दर्शक
जो सारा पथ देख
स्वयं फिर आया
और साथ में-आत्म-तोष से भरा-
मान-चित्र लाया !

और वह कैसा राही
कहे कि हाँ , ठहरो , चलता हूँ
इस दोपहरी में भी , पर इतना बतला दो
कितना पैंडा मार
मिलेगी पहली छाया ?  

- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ' अज्ञेय '

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(2) हे प्रभो आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिए -

हे प्रभो आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिए
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रत-धारी बनें॥

(3) आगे बढ़े चलेंगे -

यदि रक्त बूँद भर भी होगा कहीं बदन में
नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में ।
यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में ।
हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे ।
वह लक्ष्य सामने है , पीछे नहीं टलेंगे ॥

मंज़िल बहुत बड़ी है पर शाम ढल रही है ।
सरिता मुसीबतों की आग उबल रही है ।
तूफ़ान उठ रहा है , प्रलयाग्नि जल रही है ।
हम प्राण होम देंगे , हँसते हुए जलेंगे ।
पीछे नहीं टलेंगे , आगे बढ़े चलेंगे ॥

अचरज नहीं कि साथी भग जाएँ छोड़ भय में ।
घबराएँ क्यों, खड़े हैं भगवान जो हृदय में ।
धुन ध्यान में धँसी है, विश्वास है विजय में ।
बस और चाहिए क्या, दम एकदम न लेंगे ।
जब तक पहुँच न लेंगे , आगे बढ़े चलेंगे ॥

                       - रामनरेश त्रिपाठी

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