आलस्य के दुष्परिणाम

तुम हो धरती के पुत्र न हिम्मत हारो ,
श्रम की पूँजी से अपना काज सँवारो ,
श्रम की सीपी में ही वैभव पलता है ,
तब स्वाभिमान का दीपक स्वयं ही जलता है ,
मिट जाता है दैन्य स्वयं क्षण में ,
छा जाती है नव दीप्ति धरा के कण में ,
जागो-जागो श्रम से नाता तुम जोड़ो ,
पथ चुनो काम का,आलस का भाव तुम छोड़ो !

किन्हीं कवि की ये पंक्तियाँ जीवन में श्रम के महत्व को उजागर करती हैं और जीवन को गतिशील बनाए रखने के लिए परिश्रम करते रहने का संदेश देती है ।
' आलस्य ' और ' परिश्रम ' दोनों प्रकार के भाव मनुष्य के अंदर होते हैं , यह तो हमारे ऊपर है कि हम कौन-सा गुण अपनाते हैं ।
"आलस्य" क्या है ? »
सोना या आराम करना आलस्य नहीं है यदि आप अपने सारे काम सही समय पर करें और किसी करने योग्य कार्य को टालें नहीं तो ।
आलस्य  करने का मतलब अपने कर्तव्यों से विमुख होना और समय व्यर्थ करना है ।

आलस करना और आज का काम कल पर छोड़ देना , वास्तव में इस जीवन में प्राप्त हुए समय की बहुत बड़ी हानि करना है लेकिन जब हमें इसका एहसास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है , सारा समय निकल जाता है और फिर पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता , वैसे जिंदगी से यह सबक मैंने भी पाया है ।
इस कथन के पक्ष में कुछ उदाहरण देखिए जो हम सब ने कभी न कभी जरूर सुने हैं : -
"काल करै सो आज कर , आज करै सो अब ,
पल में परलय होयेगी , बहुरि करेगा कब । "
" प्रथमें नार्जिते विद्या , द्वितीये नार्जितं धनम्
तृतीये नार्जिते पुण्यं , चतुर्थे किम् करिष्यति।"

सत्य है , यदि समय रहते हमने सारे काम नहीं किए तो बाद में करने का अवसर नहीं मिलेगा , आखिर कोई काम करने का एक निश्चित् समय होता है ।
पढ़ाई करने का समय , पैसे कमाने का समय , समाजसेवा और दान-पुण्य करने का समय लेकिन यदि ये समय निकल गया तो जीवन के अंतिम समय में हम क्या कर सकेंगे ।
जो लोग जीवन के आखिरी समय में सफलता पाते हैं वे भी जीवन भर उस काम में मेहनत कर रहे होते हैं । अब यदि कोई सोचता है कि हमारे पास तो सबकुछ है हम क्यों काम करें , इसके लिए हमें समझना होगा - पहली बात ये है कि धन-अर्जन करना ही किसी का एकमात्र लक्ष्य नहीं होता बल्कि हमारे पास और भी कर्तव्य होते हैं करने के लिए । दूसरा , यदि चीजें कमा लीं गईं हैं तो उन्हें बनाए भी रखना पड़ता जिसमें मेहनत लगती है । अंततः आलस्य के कारण जिसने कोई काम न तो शुरू किया है और न ही पूर्ण किया है उसे इसका दुष्परिणाम् भुगतना ही पड़ेगा , साथ ही जो लोग ऐसे व्यक्ति पर आश्रित हैं और जिन पर वह व्यक्ति आश्रित है , उन्हें भी ।

आलस्य नाम का यह अवगुण भले ही एक प्रतीत होता हो लेकिन अपने आप में कई दुर्गुण समेटे हुए है जैसे- आलसी व्यक्ति काम करने से बचने के लिए झूठ बोलेगा , चोरी करेगा और शायद हेरा-फेरी भी करेगा ।
इस दृष्टि से देखा जाए तो , आलस न सिर्फ आलसी मनुष्य का शत्रु है बल्कि उससे जुड़े हुए अन्य लोगों और समाज का भी शत्रु है ।

जैसा कि इस श्लोक में कहा गया है - :
" आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपु "
आलस्य यदि थोड़ा-बहुत हो तो ज्यादा नुकसान नहीं होता क्योंकि कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें किसी विशेष वक्त पर करना पड़ता है  और इसलिए हम उन्हें टाल देते हैं लेकिन यदि हमारे अंदर आलस्य करने की आदत ज्यादा बढ़ रही है और हम लगातार अपने कामों को टाल रहें हैं तो ये आदत जरूर नुकसान करा सकती है ।
अतः आज से और अभी से आलस्य का त्याग कर दीजिए क्योंकि जीवन में कभी भी कोई अच्छा काम करने के लिए देर नहीं होती है , हो सकता है अब भी बहुत से मौके आपका इंतजार कर रहे हों ! अभी भी पर्याप्त समय बाकि कुछ करने के लिए ! कहते हैं न -
'जब जागो तभी सवेरा '...और
LIFE IS STRUGGLE , IF WE REST ,
WE RUST .
IF WE WORK , WE SHINE LIKE JEWELS .

आपके जीवन का समय अनमोल है , इसे व्यर्थ मत गवाएँ ; अपनी प्रतिभाओं को पहचानें और जो काम आपको पसंद हो वह करें क्योंकि अपनी पसंद का काम करना आलस्य से बचने का सबसे अच्छा तरीका है ।
यहाँ ये पंक्तियाँ और भी प्रेरणा देती हैं :
" अब तो उठो क्यों पड़े हो ,
व्यर्थ सोच-विचार में !
सुख तो दूर जीना भी कठिन है ,
श्रम बिना संसार में ! "
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3 comments

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January 24, 2021 at 10:29 AM delete

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September 17, 2021 at 2:47 PM delete

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 18 सितम्बर 2021 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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