बात की बात

 पाठकों ! अद्भुत लाइफ पर मैंने कई हिंदी कवितायेँ डाली हैं ; इस बार प्रस्तुत है शिवमंगल सिंह सुमन जी की कविता बात की बात । हिंदी साहित्य मुझे बहुत रुचिकर लगता है इसमें गद्य और पद्य दोनों ही शोभनीय है । हिन्दी साहित्य पढ़ने में जो लोग रूचि रखते हैं उनके लिए हम दो बहुमूल्य साइट बताने वाले हैं ; ये हैं :- कविताकोश एवं गद्यकोश । आपको इनमें हिंदी साहित्य के सर्वोत्तम लेखकों का परिचय तथा उनकी रचनाएँ दोनों मिलेंगी । यह कविता कविताकोश से ही ली गई है -

 ' बात की बात/शिवमंगल सिंह सुमन '

इस जीवन में बैठे ठाले ऐसे भी क्षण आ जाते हैं
जब हम अपने से ही अपनी बीती कहने लग जाते हैं।

तन खोया-खोया-सा लगता मन उर्वर-सा हो जाता है
कुछ खोया-सा मिल जाता है कुछ मिला हुआ खो जाता है।

लगता; सुख-दुख की स्‍मृतियों के कुछ बिखरे तार बुना डालूँ
यों ही सूने में अंतर के कुछ भाव-अभाव सुना डालूँ

कवि की अपनी सीमाऐं है कहता जितना कह पाता है
कितना भी कह डाले, लेकिन-अनकहा अधिक रह जाता है

यों ही चलते-फिरते मन में बेचैनी सी क्‍यों उठती है ?
बसती बस्‍ती के बीच सदा सपनों की दुनिया लुटती है !

जो भी आया था जीवन में यदि चला गया तो रोना क्‍या ?
ढलती दुनिया के दानों में सुधियों के तार पिरोना क्‍या ?

जीवन में काम हजारों हैं मन रम जाए तो क्‍या कहना !
दौड़-धूप के बीच एक-क्षण, थम जाए तो क्‍या कहना !

कुछ खाली खाली होगा ही जिसमें नि:श्‍वास समाया था
उससे ही सारा झगड़ा है जिसने विश्‍वास चुराया था

फिर भी सूनापन साथ रहा तो गति दूनी करनी होगी
साँचे के तीव्र-विवर्तन से मन की पूनी भरनी होगी

जो भी अभाव भरना होगा चलते-चलते भर जाएगा
पथ में गुनने बैठूँगा तो जीना दूभर हो जाएगा ।


> कविता- बात की बात / शिवमंगल सिंह ‘ सुमन ’
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